मां के आंचल में पले, मां की उंगली पकड़ कर चले। मां | हिंदी कविता

"मां के आंचल में पले, मां की उंगली पकड़ कर चले। मां ने दुनिया दिखाई, मां ने ही तो बोली सिखाइए ! मां ने हमें झूला झुलाया , मां ने ही हमें निवाला खिलाया ! मां तो है जिसने हमें पढ़ाया , मां ने ही हमें आगे बढ़ाया । मां का कर्ज है इतना, गगन में तारे जितना । नहीं मांगती कर्ज लालन-पालन का, तभी तो कहीं लाती है वह मां ! ©Ashok Ugharejiya"

 मां के आंचल में पले,
मां की उंगली पकड़ कर चले।
मां ने दुनिया दिखाई,
मां ने ही तो बोली सिखाइए ! 
मां ने हमें झूला झुलाया ,
मां ने ही हमें निवाला खिलाया !
मां तो है जिसने हमें पढ़ाया ,
मां ने ही हमें आगे बढ़ाया ।
मां का कर्ज है इतना,
गगन में तारे जितना ।
नहीं मांगती कर्ज लालन-पालन का,
तभी तो कहीं लाती है वह मां !

©Ashok Ugharejiya

मां के आंचल में पले, मां की उंगली पकड़ कर चले। मां ने दुनिया दिखाई, मां ने ही तो बोली सिखाइए ! मां ने हमें झूला झुलाया , मां ने ही हमें निवाला खिलाया ! मां तो है जिसने हमें पढ़ाया , मां ने ही हमें आगे बढ़ाया । मां का कर्ज है इतना, गगन में तारे जितना । नहीं मांगती कर्ज लालन-पालन का, तभी तो कहीं लाती है वह मां ! ©Ashok Ugharejiya

क्या है मां ?

मां की कविता

अशोक उघरेजिया

#माँ #मां #कविताएं

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