वीराने से रास्ते देख हुआ भयभीत था, वो वीराने से र | हिंदी Poetry Video

"वीराने से रास्ते देख हुआ भयभीत था, वो वीराने से रास्ते। एक परिंदा तक नहीं था, मेरी हिम्मत के वास्ते। चौराहे पर मैं खड़ा था, कहीं जाने के वास्ते। थम चुके थे पैर भी मेरे, देख ये वीराने रास्ते। किससे पूछूँ पता मंजिल का, कौन मुझको बताएगा। डरा सहमा सा मैं खड़ा था, कौन हिम्मत दे जाएगा। बाकी तरफ भी दूर-दूर तक, सिर्फ थे वीराने से रास्ते। हिम्मत कर मैं बढ़ चला था, अपने मंजिल के वास्ते। कौन सी डगर को बढ़ चला मैं, सब थे अनजाने से रास्ते। पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, सभी थे वीराने से रास्ते। चलते-चलते तभी रुका मैं, जब मंजिल थी मेरे सामने। वीरानों को छोड़ आया मैं, जो लगे थे मुझको थामने। ..................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit "

वीराने से रास्ते देख हुआ भयभीत था, वो वीराने से रास्ते। एक परिंदा तक नहीं था, मेरी हिम्मत के वास्ते। चौराहे पर मैं खड़ा था, कहीं जाने के वास्ते। थम चुके थे पैर भी मेरे, देख ये वीराने रास्ते। किससे पूछूँ पता मंजिल का, कौन मुझको बताएगा। डरा सहमा सा मैं खड़ा था, कौन हिम्मत दे जाएगा। बाकी तरफ भी दूर-दूर तक, सिर्फ थे वीराने से रास्ते। हिम्मत कर मैं बढ़ चला था, अपने मंजिल के वास्ते। कौन सी डगर को बढ़ चला मैं, सब थे अनजाने से रास्ते। पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, सभी थे वीराने से रास्ते। चलते-चलते तभी रुका मैं, जब मंजिल थी मेरे सामने। वीरानों को छोड़ आया मैं, जो लगे थे मुझको थामने। ..................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit

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वीराने से रास्ते

देख हुआ भयभीत था,
वो वीराने से रास्ते।
एक परिंदा तक नहीं था,
मेरी हिम्मत के वास्ते।

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