सागर गहरा सागर हूँ पर उठने का करता यत्न निरंतर पू | हिंदी कविता

"सागर गहरा सागर हूँ पर उठने का करता यत्न निरंतर पूरी ताकत से लहरों को भेज रहा हूँ ऊपर बार बार गिरती हैं फिर भी नहीं मानता हार जोर लगता हूँ मैं फिर से चकित देख संसार शरण सभी को देता हूँ मैं जो भी दर पर आता उसे गोद में लेकर अपने हाथों से नहलाता बेखुद मेरा आश्रय पाकर सुखी सहस्रों जीव बेशकीमती रत्नों से है भरी हमारी नीँव ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 सागर

गहरा सागर हूँ पर उठने का
करता यत्न निरंतर
पूरी ताकत से लहरों को
भेज रहा हूँ ऊपर

बार बार गिरती हैं फिर भी
नहीं मानता हार
जोर लगता हूँ मैं फिर से
चकित देख संसार

शरण सभी को देता हूँ मैं
जो भी दर पर आता
उसे गोद में लेकर अपने
हाथों से नहलाता

बेखुद मेरा आश्रय पाकर
सुखी सहस्रों जीव
बेशकीमती रत्नों से है
भरी हमारी नीँव

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

सागर गहरा सागर हूँ पर उठने का करता यत्न निरंतर पूरी ताकत से लहरों को भेज रहा हूँ ऊपर बार बार गिरती हैं फिर भी नहीं मानता हार जोर लगता हूँ मैं फिर से चकित देख संसार शरण सभी को देता हूँ मैं जो भी दर पर आता उसे गोद में लेकर अपने हाथों से नहलाता बेखुद मेरा आश्रय पाकर सुखी सहस्रों जीव बेशकीमती रत्नों से है भरी हमारी नीँव ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#सागर

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