गिरते हैं तो क्या हुआ, उठने की कोशिश जारी है।।
जो सहता प्रहार शिल्प का, पत्थर वह पूजा जाता
खाता दर-दर का है ठोकर, जो कष्टों से कतराता,
चमक स्वर्ण की बढ़ती जाती, जितना वह तपता जाता,
कष्ट सहन कर बना बांसुरी, होठों पर शोभा पाता।
कष्टों से जो न घबराएँ, दुनिया उससे हारी है,
गिरते हैं तो क्या हुआ, उठने की कोशिश जारी है।
आखिर जिता उसने भी, जिसने सत्रह बार हारा,
पितृगोद से गिरा हुआ, बन बैठा ध्रुव तारा,
अंधे होकर सूरदास ने, राह दिखाया जग सारा,
अंग्रेजों से लोहा लेती, जिसका पति था स्वर्ग सिधारा।
किस्मत का रोना वे रोएँ, हिम्मत जिसने हारी है,
गिरते हैं तो क्या हुआ, उठने की कोशिश जारी है।।
बूढ़े गाँधी ने देश से, अँग्रेजों को भगाए,
दशरथ माझी तोड़-तोड़ कर, पर्वत में राह बनाए,
छोटी चिट्टी खुद से भी, ज्यादा बोझ उठाए,
हिम्मत हो तो पंगु भी, ऊँचे पर्वत चढ़ जाएँ।
लक्ष्य छोड़ कर लौटे कैसे, ऐसी क्या लचारी है,
गिरते हैं तो क्या हुआ, उठने की कोशिश जारी है।
©Ms.(P.✍️Gurjar)
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