हे रिक्शा चालक तुम महान हो गाजियाबाद की बात है,

"हे रिक्शा चालक तुम महान हो गाजियाबाद की बात है, मैं शौपिंग करके साइकिल रिक्शे से घर लौट रहा था, बहुत गरमी पड़ रही थी ।  रिक्शे वाले ने एक जगह प्रोविसन स्टोर पर रिक्शा रोका और मुझे बोला " साब एक मिनट मे आया ,  जब वो लौटा तो उसके हाथ मे एक बिस्कुट का पैकेट था,  उसने मुझे बताया की आज उसके बच्चे का जन्म दिन है और वो ये बिस्कुट का पैकेट अपने बच्चे को उपहार मे भेंट करेगा ! मेरी अन्तरआत्मा रो पड़ी और मेने ये रचना लिखी। हे सहन शील , हे अडिग शिखर , तुम शांत शांत अविलम्ब चले  हो शीत ग्रीष्म , तुम सजग निडर , मंजिल पहुँचाने कदम बढे ! कंचित काया , मुख कांतिहीन , नैनों से झलके बुझे बुझे  तुम हो महान हे दलित दीन, तेरी जीवन गाथा कौन सुने ! मन मे बेचैनी और चिंतन , है जन्म दिवस , उसके शिशु का  कर डाला प्रस्तुत श्रम और तन , उपहार खरीदेगा जिसका ! मुझे छोड़ राह मे निकल गया , बिस्किट के दो पैकेट लाया  फिर छोड़ श्वांस निश्चिंत हुआ , मुख पर आनंद उमड़ आया ! (अब मैं कहता हूँ ) ऐ मेरे देश की धरती माँ , तुझे शर्म क्यों नही आती है  धनी सेठ घर जलती शम्मा , निर्धन घर रात सताती है ! किस किस से मैं करूँ निवेदन , दया नही , तन मन धन से सहयोग करे  प्रभु मुझे सिखा दो धन अर्जन , जिसका निर्धन उपयोग करें ! @ कवि श्रेय तिवारी - मुंबई "

 हे रिक्शा चालक तुम महान हो


गाजियाबाद की बात है, मैं शौपिंग करके साइकिल रिक्शे से घर लौट रहा था, बहुत गरमी पड़ रही थी । 
रिक्शे वाले ने एक जगह प्रोविसन स्टोर पर रिक्शा रोका और मुझे बोला " साब एक मिनट मे आया , 
जब वो लौटा तो उसके हाथ मे एक बिस्कुट का पैकेट था, 

उसने मुझे बताया की आज उसके बच्चे का जन्म दिन है और वो ये बिस्कुट का पैकेट अपने बच्चे को उपहार मे भेंट करेगा ! मेरी अन्तरआत्मा रो पड़ी और मेने ये रचना लिखी।


हे सहन शील , हे अडिग शिखर ,
तुम शांत शांत अविलम्ब चले 
हो शीत ग्रीष्म , तुम सजग निडर ,
मंजिल पहुँचाने कदम बढे !

कंचित काया , मुख कांतिहीन ,
नैनों से झलके बुझे बुझे 
तुम हो महान हे दलित दीन,
तेरी जीवन गाथा कौन सुने !

मन मे बेचैनी और चिंतन ,
है जन्म दिवस , उसके शिशु का 
कर डाला प्रस्तुत श्रम और तन ,
उपहार खरीदेगा जिसका !

मुझे छोड़ राह मे निकल गया ,
बिस्किट के दो पैकेट लाया 
फिर छोड़ श्वांस निश्चिंत हुआ ,
मुख पर आनंद उमड़ आया !

(अब मैं कहता हूँ )


ऐ मेरे देश की धरती माँ ,
तुझे शर्म क्यों नही आती है 
धनी सेठ घर जलती शम्मा ,
निर्धन घर रात सताती है !

किस किस से मैं करूँ निवेदन ,
दया नही , तन मन धन से सहयोग करे 
प्रभु मुझे सिखा दो धन अर्जन ,
जिसका निर्धन उपयोग करें !


@ कवि श्रेय तिवारी - मुंबई 

हे रिक्शा चालक तुम महान हो गाजियाबाद की बात है, मैं शौपिंग करके साइकिल रिक्शे से घर लौट रहा था, बहुत गरमी पड़ रही थी ।  रिक्शे वाले ने एक जगह प्रोविसन स्टोर पर रिक्शा रोका और मुझे बोला " साब एक मिनट मे आया ,  जब वो लौटा तो उसके हाथ मे एक बिस्कुट का पैकेट था,  उसने मुझे बताया की आज उसके बच्चे का जन्म दिन है और वो ये बिस्कुट का पैकेट अपने बच्चे को उपहार मे भेंट करेगा ! मेरी अन्तरआत्मा रो पड़ी और मेने ये रचना लिखी। हे सहन शील , हे अडिग शिखर , तुम शांत शांत अविलम्ब चले  हो शीत ग्रीष्म , तुम सजग निडर , मंजिल पहुँचाने कदम बढे ! कंचित काया , मुख कांतिहीन , नैनों से झलके बुझे बुझे  तुम हो महान हे दलित दीन, तेरी जीवन गाथा कौन सुने ! मन मे बेचैनी और चिंतन , है जन्म दिवस , उसके शिशु का  कर डाला प्रस्तुत श्रम और तन , उपहार खरीदेगा जिसका ! मुझे छोड़ राह मे निकल गया , बिस्किट के दो पैकेट लाया  फिर छोड़ श्वांस निश्चिंत हुआ , मुख पर आनंद उमड़ आया ! (अब मैं कहता हूँ ) ऐ मेरे देश की धरती माँ , तुझे शर्म क्यों नही आती है  धनी सेठ घर जलती शम्मा , निर्धन घर रात सताती है ! किस किस से मैं करूँ निवेदन , दया नही , तन मन धन से सहयोग करे  प्रभु मुझे सिखा दो धन अर्जन , जिसका निर्धन उपयोग करें ! @ कवि श्रेय तिवारी - मुंबई 

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