"पिंजर साँसों का , है धड़कन ज़ंजीरे
न फ़िक्र कल की , न हाथों में तक़दीरें
ये सफ़र रुक गया , ये मंज़र रूक गया
इंसानी ग़रूर, क़ुदरत के कदमो में झुक गया
KARAN KASHYAP"
पिंजर साँसों का , है धड़कन ज़ंजीरे
न फ़िक्र कल की , न हाथों में तक़दीरें
ये सफ़र रुक गया , ये मंज़र रूक गया
इंसानी ग़रूर, क़ुदरत के कदमो में झुक गया
KARAN KASHYAP