मेरी आह की पहचान कहां....! वो कहता इश्क बेइंतेहां | हिंदी कविता Video

"मेरी आह की पहचान कहां....! वो कहता इश्क बेइंतेहां कहां....  हँसाता है तो हंस देता हूँ रुलाए तो रो देता हूँ... वो कह दें दिन को रात, तो मैं कह देता हूँ... वो कहता इश्क बेइंतेहां कहां... जब चाहें वो...मैं कंकर को ताज, माटी को साज बता देता हूँ... उसकी अंगुलियों पर घूमते धागों सा... मैं कठपुतली बन नाच देता हूँ, वो अगर रूठे तो...किसी सर्कस के जोकर सा किरदार हूँ, उसे रिझाने को....बनाकर खिलौना दिल का, चाबी उसके हाथों में थमा देता हूँ, मेरी आह की पहचान कहां.....! वो कहता इश्क बेइंतहा कहां.....!! ©Moksha "

मेरी आह की पहचान कहां....! वो कहता इश्क बेइंतेहां कहां....  हँसाता है तो हंस देता हूँ रुलाए तो रो देता हूँ... वो कह दें दिन को रात, तो मैं कह देता हूँ... वो कहता इश्क बेइंतेहां कहां... जब चाहें वो...मैं कंकर को ताज, माटी को साज बता देता हूँ... उसकी अंगुलियों पर घूमते धागों सा... मैं कठपुतली बन नाच देता हूँ, वो अगर रूठे तो...किसी सर्कस के जोकर सा किरदार हूँ, उसे रिझाने को....बनाकर खिलौना दिल का, चाबी उसके हाथों में थमा देता हूँ, मेरी आह की पहचान कहां.....! वो कहता इश्क बेइंतहा कहां.....!! ©Moksha

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