White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ खुद से ही मैं | हिंदी शायरी

"White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ सच है यही रोशनी जब भी उतरी बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ ©सुरेश सारस्वत"

 White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ 
खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ

वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना 
खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ

सच है यही रोशनी जब भी उतरी
बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ 

नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं 
सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ

पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें 
कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ

©सुरेश सारस्वत

White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ सच है यही रोशनी जब भी उतरी बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ ©सुरेश सारस्वत

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