White मेरी सुनी कलाई यूं ही छोड़ कर,
तुम जाना पिया ये वचन तोड़ कर।
जिंदगी के हरे सावनों की कसम
मैं भी चल दूंगी तुमसे ये मुंह मोड़ कर।।
साथ दरिया के बहते किनारे ढहे,
देख कर चांद फिर बादलों से कहे,
प्रीत की रीत जग से निराली भई,
फूल डाली पे सूखे है जग छोड़ कर।
एक पतंगे को भाई है बाती कोई,
ऐसा लगता है अपना है साथी कोई,
रात होते ही जलने लगे है दिया
आए फिर से पतंगा नया दौड़ कर।
तुम चलोगे जहां मैं चलूंगी वहां
तुम हो नीला समंदर, मैं हूं आसमां
हर तरफ मैं ही तेरा किनारा बनूं
इस तरफ कर तू चाहे उधर छोर कर।।
निर्भय चौहान
©निर्भय निरपुरिया
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