White भर दिया है सारे पन्नो को,
तेरी तारीफों से मुसलसल,
इक मुद्दत से मैंने ख़ुद की ही,
खामियों को बेहिसाब लिखा।
अब तो कुछ भी होश नहीं,
कि और क्या-क्या लिखा,
शायद खुश्बू को तेरी इत्र और,
आँखों को तेरी शराब लिखा।
फकत बेकरारी का ही तो आलम है,
और तो कुछ भी नहीं,
मैंने आज भी अपनी गज़लों में,
ख़ुद को खार और तुझको गुलाब लिखा।
इक अरसा हुआ कि,
राख कर दिया है खुद की सारी हसरतों को,
कि तमन्नाओं की फ़ेहरिस्त में,
हर पल तेरा ही अधूरा ख़्वाब लिखा।
©Kumar Saurabh
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