चांद भी क्या खूब है, न सर पर घूंघट है, न चेहरे पर

"चांद भी क्या खूब है, न सर पर घूंघट है, न चेहरे पर बुरका, कभी करवाचौथ का हो गया, तो कभी ईद का, तो कभी ग्रहण का अगर जमीन पर होता तो टूटकर विवादो में होता, अदालत की सुनवाई में होता, अखबार की सुर्खियों में होता, लेकिन शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है, इसलिए जमीन में कविताओं और गजलों में महफूज हैं। ©Samiksha Chaturvedi"

 चांद भी क्या खूब है,
न सर पर घूंघट है,
न चेहरे पर बुरका,
कभी करवाचौथ का हो गया,
तो कभी ईद का,
तो कभी ग्रहण का
अगर जमीन पर होता तो टूटकर विवादो में होता,
अदालत की सुनवाई में होता,
अखबार की सुर्खियों में होता,
लेकिन शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है,
इसलिए जमीन में कविताओं और गजलों में महफूज हैं।

©Samiksha Chaturvedi

चांद भी क्या खूब है, न सर पर घूंघट है, न चेहरे पर बुरका, कभी करवाचौथ का हो गया, तो कभी ईद का, तो कभी ग्रहण का अगर जमीन पर होता तो टूटकर विवादो में होता, अदालत की सुनवाई में होता, अखबार की सुर्खियों में होता, लेकिन शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है, इसलिए जमीन में कविताओं और गजलों में महफूज हैं। ©Samiksha Chaturvedi

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