साथ में जो भी सच के रहता है आज के दौर में वो तनहा | हिंदी શાયરી અને ગ

"साथ में जो भी सच के रहता है आज के दौर में वो तनहा है मेरी आँखों में देख वो बोला तेरा आँसू से कोई रिश्ता है ख़ून में ज्वार अब नहीं उठता जिस्म में और कुछ ही बहता है ख़ुद को देखूँ तो किस तरह देखूँ अक़्स भी अजनबी-सा लगता है तुम बिछड़ जाओ ये सहूँ कैसे मैंने दुनिया से तुमको छीना है लोग भी सोचते हैं अब अक़्सर क्या-क्या 'अद्भुत' ग़ज़ल में कहता है ©RAHUL MAKVANA"

 साथ में जो भी सच के रहता है
आज के दौर में वो तनहा है

मेरी आँखों में देख वो बोला
तेरा आँसू से कोई रिश्ता है

ख़ून में ज्वार अब नहीं उठता
जिस्म में और कुछ ही बहता है

ख़ुद को देखूँ तो किस तरह देखूँ
अक़्स भी अजनबी-सा लगता है

तुम बिछड़ जाओ ये सहूँ कैसे
मैंने दुनिया से तुमको छीना है

लोग भी सोचते हैं अब अक़्सर
क्या-क्या 'अद्भुत' ग़ज़ल में कहता है

©RAHUL MAKVANA

साथ में जो भी सच के रहता है आज के दौर में वो तनहा है मेरी आँखों में देख वो बोला तेरा आँसू से कोई रिश्ता है ख़ून में ज्वार अब नहीं उठता जिस्म में और कुछ ही बहता है ख़ुद को देखूँ तो किस तरह देखूँ अक़्स भी अजनबी-सा लगता है तुम बिछड़ जाओ ये सहूँ कैसे मैंने दुनिया से तुमको छीना है लोग भी सोचते हैं अब अक़्सर क्या-क्या 'अद्भुत' ग़ज़ल में कहता है ©RAHUL MAKVANA

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