"जिस दिन लिखकर हो नहीं जाता ll
मैं उस रात ठीक से सो नही पाता ll
जब तक अश्क रूपी बारिशें न हो,
इंसान खत रूपी खेत बो नहीं पाता ll
वो तो कलम ने बोझ कम कर दिया,
वरना, इतना वजन मैं ढो नहीं पाता ll
पढना तो सभी को आता है मगर,
समझना हर किसी को नहीं आता ll
कुछ न कुछ सोचते रहता हूँ मैं,
हस नहीं पाता, मैं रो नहीं पाता ll"
©Akhilesh Dixit
#MountainPeak