"इश्क़ में आशिक़ के लिए माशूक़ से ज़्यादा अहम
कोई और होना ही नहीं चाहिए।
कोई और भी अहम हो जाए अगर,
तो इस इश्क़ को इश्क़ कहना ही नहीं चाहिए।
इश्क़-ए-हक़ीक़ी का तो यही तकाज़ा होता है और
इश्क़-ए-मजाज़ी में भी दस्तूर यही होना चाहिए।
#bas yunhi ek khayaal .......
©Sh@kila Niy@z"