"चिड़िया चुगती दाना
जाकर जगह-जगह पर
ठहर जाती
पाती स्नेह जहां पर
इतना विश्वास
दाना डालने आए वो
बैठी रही पास
देखती रही तुम्हारी तरफ
नजरों में स्नेह भर
पास जाकर जाल बिछा
पिंजरे में कैद कर
जैसा तुम चाहो वैसा ही
बोलना, खाना, पीना सब कुछ
अरे!पेट की भूख और
स्नेह की भूख मिटाने वालों
पिंजरे में कैद कर क्या सही किया तुमने?"