White शाश्वत, सिंह, शर्पान बना मैं, उभचर, नभचर, श् | हिंदी कविता

"White शाश्वत, सिंह, शर्पान बना मैं, उभचर, नभचर, श्वान बना मैं। बना कभी गोचर नभतारा, कभी निर्जीव पाषाण बना मैं।। कभी जीव जीवचर खान लगा, कभी बल बुद्धि का अभिमान लगा।। कभी दंतक दो में विष लिए, कभी हाथ पैर छत्तीस लिए।। मदकल, मूस्टक, नन्ही बिलैया, कीट- कीटाणु, शुद्धक गैया।। हस्त, पद, काया आकार, नश्वर शरीर, नाना प्रकार।। वाचाल, मंद और मौनियों में, लाख चौरासी योनियां में।। मन भटक भटक, तन भटक भटक मायासागर में, मैं गया अटक।। मेरी निराधार कश्ती को, हे भगवन आधार लगाओ, मोहन प्यारे उद्धार लगाओ, मेरी नौका अब पर लगाओ।। जीव विक्षिप्त हुआ अब, इस तन से, पुनर पुनर जीवन मरण से। एक आखिरी अरदास है प्यारे, निर्बल तेरा दास है प्यारे, अपने कर से इसे संभाल, नेकि कर दरिया में डाल।। पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम् | इह संसारे बहु दुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे ‖ ©ANKIT"

 White शाश्वत, सिंह, शर्पान बना मैं,
उभचर, नभचर, श्वान बना मैं।
बना कभी गोचर नभतारा,
कभी निर्जीव पाषाण बना मैं।।

कभी जीव जीवचर खान लगा,
कभी बल बुद्धि का अभिमान लगा।।

कभी दंतक दो में विष लिए, 
कभी हाथ पैर छत्तीस लिए।।
मदकल, मूस्टक, नन्ही बिलैया,
कीट- कीटाणु, शुद्धक गैया।।

हस्त, पद, काया आकार, 
नश्वर शरीर, नाना प्रकार।।

वाचाल, मंद और मौनियों में,
लाख चौरासी योनियां में।।
मन भटक भटक, तन भटक भटक
मायासागर में, मैं गया अटक।।

मेरी निराधार कश्ती को, हे भगवन आधार लगाओ,
मोहन प्यारे उद्धार लगाओ, मेरी नौका अब पर लगाओ।।

जीव विक्षिप्त हुआ अब, इस तन से, 
पुनर पुनर जीवन मरण से।

एक आखिरी अरदास है प्यारे, निर्बल तेरा दास है प्यारे,
अपने कर से इसे संभाल, नेकि कर दरिया में डाल।।

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम् |
इह संसारे बहु दुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे ‖

©ANKIT

White शाश्वत, सिंह, शर्पान बना मैं, उभचर, नभचर, श्वान बना मैं। बना कभी गोचर नभतारा, कभी निर्जीव पाषाण बना मैं।। कभी जीव जीवचर खान लगा, कभी बल बुद्धि का अभिमान लगा।। कभी दंतक दो में विष लिए, कभी हाथ पैर छत्तीस लिए।। मदकल, मूस्टक, नन्ही बिलैया, कीट- कीटाणु, शुद्धक गैया।। हस्त, पद, काया आकार, नश्वर शरीर, नाना प्रकार।। वाचाल, मंद और मौनियों में, लाख चौरासी योनियां में।। मन भटक भटक, तन भटक भटक मायासागर में, मैं गया अटक।। मेरी निराधार कश्ती को, हे भगवन आधार लगाओ, मोहन प्यारे उद्धार लगाओ, मेरी नौका अब पर लगाओ।। जीव विक्षिप्त हुआ अब, इस तन से, पुनर पुनर जीवन मरण से। एक आखिरी अरदास है प्यारे, निर्बल तेरा दास है प्यारे, अपने कर से इसे संभाल, नेकि कर दरिया में डाल।। पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम् | इह संसारे बहु दुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे ‖ ©ANKIT

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