ज़िंदगी दिसंबर सी ज़िन्दगी दिसंबर सी हो गयी है
रातें खंडहर सी हो गयी है
मैं ख़ुश तो होना चाहती हूं
मगर आंसू समंदर सी हो गयी है
हर दिन एक नये जख्म दे कर चला जाता है
सुकून भी जैसे बवण्डर सी हो गयी है
मैं लोगों से उम्मीद नहीं रखती,
मेरी ही उम्मीद जैसे खंजर सी हो गयी है...
ज़िन्दगी में जैसे खोते ही रहना है
जैसे ज़िन्दगी बंजर सी हो गयी है...
©Roshni Mehar
#december