में बेटी हु बापू के आँगन में खेली में,माँ के आँचल | हिंदी कविता

"में बेटी हु बापू के आँगन में खेली में,माँ के आँचल में सोई हु। पिता की राजदुलारी हु,भैया की प्यारी हु। हु पली बढ़ी इन सब के लाड़ की छाव में। जान से प्यारी हु इन सब की राजकुमारी हु। फिर भी छोड़ कर इन सब को में तुम्हारे घर आई हूं। ©ankit malav"

 में बेटी हु

बापू के आँगन में खेली में,माँ के आँचल में सोई हु।
पिता की राजदुलारी हु,भैया की प्यारी हु।
हु पली बढ़ी इन सब के लाड़ की छाव में।
जान से प्यारी हु इन सब की राजकुमारी हु।
फिर भी छोड़ कर इन सब को में तुम्हारे घर आई हूं।

©ankit malav

में बेटी हु बापू के आँगन में खेली में,माँ के आँचल में सोई हु। पिता की राजदुलारी हु,भैया की प्यारी हु। हु पली बढ़ी इन सब के लाड़ की छाव में। जान से प्यारी हु इन सब की राजकुमारी हु। फिर भी छोड़ कर इन सब को में तुम्हारे घर आई हूं। ©ankit malav

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