"मर चूका हूँ मैं कब का ,ज़िंदा है यह जिस्म यह मेरा ,,
नजाने किस सोच का मूंतज़िर हूँ ,,
शायद अब कोई फिर अपनी मोहोब्बत से जीने की नई वजह देगा !
ऋषभ -द - -ऑक्टेव"
मर चूका हूँ मैं कब का ,ज़िंदा है यह जिस्म यह मेरा ,,
नजाने किस सोच का मूंतज़िर हूँ ,,
शायद अब कोई फिर अपनी मोहोब्बत से जीने की नई वजह देगा !
ऋषभ -द - -ऑक्टेव