थोड़ी ठंड की ठंडक में ठिठुरता हूं मै, हज़ार हरे हर
"थोड़ी ठंड की ठंडक में ठिठुरता हूं मै,
हज़ार हरे हरे हरिया पत्तो को टूटते देख हारता हूं मै,
समय सुबह के शाम सी लाली को समझता हूं मै,
हा प्राकृतिक पात को देखता हूं मै, देखता हूं मै।"
थोड़ी ठंड की ठंडक में ठिठुरता हूं मै,
हज़ार हरे हरे हरिया पत्तो को टूटते देख हारता हूं मै,
समय सुबह के शाम सी लाली को समझता हूं मै,
हा प्राकृतिक पात को देखता हूं मै, देखता हूं मै।