गिर गिरकर उठने की कोशिश की, मगर..
खोते हुए को कोई सहारा ना मिला,
ख्वाबों को हकीकत का किनारा ना मिला,
कदम से कदम मिलाकर चलने वाला ना मिला,
लोगों के दोखो का हिसाब ना मिला,
सांसों को मन का चैन ना मिला,
सातो जनम मैं भी एक जनम का साथ ना मिला,
गिर गिरकर उठने की कोशिश की, मगर...
बेसहारा शरीर को इंसानियत का सहारा ना मिला,
जब गिरकर उठने की हिम्मत ना रही..
तब बेगैरयत के चार कंधों का मेला-सा मिला।।
©Deeksha Pilania
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