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जाएँ तो जाएँ कहाँ, नहीं कहीं भी ठौर।
कोई नहिं अपना यहां, है स्वार्थ का दौर।।
जाएँ तो जाएँ कहाँ, सीधे सच्चे लोग।
शैतानों के बीच रह, कष्ट रहे हैं भोग।।
जाएँ तो जाएं कहाँ, लेकर मन की बात।
कड़वी होती है बड़ी, सीधी सच्ची बात।।
धीरज होना चाहिए, बदलेंगे हालात।
जाएँ तो जाएँ कहां, सब देते आघात।।
जाएँ तो जाएँ कहाँ, अपने घर को छोड़।
रूठ गये हमसे सभी,चल रहे मुंह मोड़।।
बैठे हैं चुपचाप हम, आई किसकी याद।
जाएँ तो जाएँ कहाँ, सुने कौन फरियाद।।
स्वरचित -निलम अग्रवाला, खड़गपुर
©Nilam Agarwalla
#जाएँ तो जाएँ कहाँ