रोज बेच रहे ख्वाब गिन रहे तारे कि आये वो रात जब बन | हिंदी शायरी Video

"रोज बेच रहे ख्वाब गिन रहे तारे कि आये वो रात जब बनो तुम हमारे तारा टूटता एक जागते अरमां अनेक फिर सुबह उगता सूरज तो डूबते सब बेचारे काली काली रातें सो रही विरानेपन की ओढ़ें हैं चादर काश काट रही होती नींद किसी काली जुल्फों के सहारे ©SANAM.Raj "

रोज बेच रहे ख्वाब गिन रहे तारे कि आये वो रात जब बनो तुम हमारे तारा टूटता एक जागते अरमां अनेक फिर सुबह उगता सूरज तो डूबते सब बेचारे काली काली रातें सो रही विरानेपन की ओढ़ें हैं चादर काश काट रही होती नींद किसी काली जुल्फों के सहारे ©SANAM.Raj

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