White " बेटी थी वो "
सौ सपने और - आंखों में ख्वाब लिए बैठी थी वो
" बेटी थी वो "
ना कोई तर्क जिनका उन बातों को सेहती थी वो
" बेटी थी वो "
ये ज़ालिम समाज बेहरे भी और आंख के होते अंधे हैं ,
खुद का ईमान भी बेच केहते अपने तो धंधे हैं |
पर उन धंधों में बर्कत भी जो देती थी जो ,
" बेटी थी वो "
डर है, पाबंदियों के डर से पैड़ों में - बेड़िया ना कोई पड़ जाये,
कब कहाॅं इंसान जैसा - पिछे भेड़िया ना कोई पड़ जाये |
ऑंखों में अश्क लिये - लौटी घर को पर
इक लफ़्ज़ भी ना केहती थी वो
" बेटी थी वो "
" फिर आई रात कयामत इक दिन "
जीन ख़्वाब भरे ऑंखों को देख - सूबह बाप को था- सूकून मिला,
हुई रात काली उन ऑंखों से - बाप को बेहता खून मीला |
राम-राम केहने वालों - सीता खून से लथपत - लेटी थी वो
" बेटी थी वो " 💔
-Ritu Raj।
©Ritu Raj
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