चार कदम भी नहीं हुए थे चलने के,
अभी से अलविदा कह आए हो,
जाना एक बात समझ लो दिल खिलौना नहीं,
फिर भी उसके साथ खेल आए हों।
नजर अंदाज करना हमें भी आता है,
तुम नए दाव पेंच सीख कर आए हों,
मैनें मेरी शामें तेरे नाम की थी,
उनका भी तुम मज़ाक बनाकर आए हो।
©chand alfaz