गूंगा देख रहा रंगीन जहाँ पर बोल नही सकता है अपनमन | हिंदी कविता

"गूंगा देख रहा रंगीन जहाँ पर बोल नही सकता है अपनमन का भेद किसी से खोल नहीं सकता है शब्द हृदय में घूम रहें है प्रकट करे वो कैसे दुनिया से संपर्क करे वो पशु पक्षी के जैसे आँसू टपकाये गर अपना समझें लोग दुःखी है होठों पर मुश्कान देखकर कहते लोग सुखी है बेखुद जीवन का सूनापान कोई नहीं भर सकता कोई नहीं मिलता हमराही गर जीवन में थकता ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 गूंगा

देख रहा रंगीन जहाँ पर
बोल नही सकता है
अपनमन का भेद किसी से
खोल नहीं सकता है

शब्द हृदय में घूम रहें है
प्रकट करे वो कैसे
दुनिया से संपर्क करे वो
पशु पक्षी के जैसे

आँसू टपकाये गर अपना
समझें लोग दुःखी है
होठों पर मुश्कान देखकर
कहते लोग सुखी है

बेखुद जीवन का सूनापान
कोई नहीं भर सकता
कोई नहीं मिलता हमराही
गर जीवन में थकता

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

गूंगा देख रहा रंगीन जहाँ पर बोल नही सकता है अपनमन का भेद किसी से खोल नहीं सकता है शब्द हृदय में घूम रहें है प्रकट करे वो कैसे दुनिया से संपर्क करे वो पशु पक्षी के जैसे आँसू टपकाये गर अपना समझें लोग दुःखी है होठों पर मुश्कान देखकर कहते लोग सुखी है बेखुद जीवन का सूनापान कोई नहीं भर सकता कोई नहीं मिलता हमराही गर जीवन में थकता ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#गूंगा

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