हूं रावण मैं हे राम तम्हारे तीरों से, क्यों करते | हिंदी कविता

"हूं रावण मैं हे राम तम्हारे तीरों से, क्यों करते हो यूँ संहार मेरा। तेरी सीता तो निर्मल थी, ना हुआ कभी उसे स्पर्श मेरा।। हूँ वो रावण मैं जिसने शिव धारड़, कैलाश भुजा में उठाया था। छ दर्शन चतुर् वेदों का ज्ञाता, मैं जगत में दसकंठी कहलाया था।। था अपराध मेरा बस इतना ही, की तुमको ना पहचान सका। पर जो स्वयम् ब्रम्ह वरदानी था, वो कैसे न तुमको जान सका।। ये माया भी तो तेरी थी, की हर मनुज को समझाना है। की हर नारी में सीता है, ये इस दुनिया को बतलाना है।। ©Atul singh"

 हूं रावण मैं

हे राम तम्हारे तीरों से, 
क्यों करते हो यूँ संहार मेरा।
तेरी सीता तो निर्मल थी, 
ना हुआ कभी उसे स्पर्श मेरा।।
हूँ वो रावण मैं जिसने शिव धारड़, 
कैलाश भुजा में उठाया था।
छ दर्शन चतुर् वेदों का ज्ञाता, 
मैं जगत में दसकंठी कहलाया था।।
था अपराध मेरा बस इतना ही, 
की तुमको ना पहचान सका।
पर जो स्वयम् ब्रम्ह वरदानी था, 
वो कैसे न तुमको जान सका।।
ये माया भी तो तेरी थी, 
की हर मनुज को समझाना है।
की हर नारी में सीता है, 
ये इस दुनिया को बतलाना है।।

©Atul singh

हूं रावण मैं हे राम तम्हारे तीरों से, क्यों करते हो यूँ संहार मेरा। तेरी सीता तो निर्मल थी, ना हुआ कभी उसे स्पर्श मेरा।। हूँ वो रावण मैं जिसने शिव धारड़, कैलाश भुजा में उठाया था। छ दर्शन चतुर् वेदों का ज्ञाता, मैं जगत में दसकंठी कहलाया था।। था अपराध मेरा बस इतना ही, की तुमको ना पहचान सका। पर जो स्वयम् ब्रम्ह वरदानी था, वो कैसे न तुमको जान सका।। ये माया भी तो तेरी थी, की हर मनुज को समझाना है। की हर नारी में सीता है, ये इस दुनिया को बतलाना है।। ©Atul singh

#Dussehra

People who shared love close

More like this

Trending Topic