लहज़ा ज़रा संभाल कर, कहीं ज़ुबान न फिसल जाए जब तक | हिंदी विचार

"लहज़ा ज़रा संभाल कर, कहीं ज़ुबान न फिसल जाए जब तक हैं ख़ामोश खुश रहो, ऐसा न हो की तुम्हारी ज़िद्द से कहीं हम न बदल जाएं। ©RASHID KHAN"

 लहज़ा ज़रा संभाल कर,
कहीं ज़ुबान न फिसल जाए
जब तक हैं ख़ामोश खुश रहो,
ऐसा न हो की तुम्हारी ज़िद्द से कहीं हम न बदल जाएं।

©RASHID KHAN

लहज़ा ज़रा संभाल कर, कहीं ज़ुबान न फिसल जाए जब तक हैं ख़ामोश खुश रहो, ऐसा न हो की तुम्हारी ज़िद्द से कहीं हम न बदल जाएं। ©RASHID KHAN

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