हर तरफ ये कैसा शोर है,
ये मेरा है वो उसका जाने कैसी होड़ है..
प्रेम की इस परिभाषा में ,
ये कैसा स्वार्थ झलकता है..
जैसे दिल की चारदीवारी में,
कोई गहरा डर पनपता है..
बस तुमको ये समझना,
खुद को स्वतंत्र करना है..
बांधो किसी को न खुद से ,
न तमको किसीसे बंधना है..
प्रेम खुद में स्वतंत्र है जब ,
तो क्यों इसमें कैदी बनना है..
अपने अंतर्मन की इस उलझन से,
खुद को मुक्त करना है..
समझोगे जिस दिन ये सच तुम,
सुख दुख से दूर तुम जाओगे..
फँसोगे न किसी भी जाल में,
जीवन को तब तुम समझ पाओगे..
©Kamya Tripathi
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