मैं बावरी सी हूँ
मग़र नही हूँ बेपरवाह
रिश्ते निभाना बखूबी जानती हूँ मैं
होकर एक तरफा।
मुस्कुराती हूँ जब मैं
ग़म फ़िके पड़ जाते हैं
मेरी सादगी के आगे
सब पीछे रह जाते हैं।
परिन्दों को देख कर खुश होने वाली मैं
भला इन्सानों पर कहाँ मरूँगी
मैं सजने वाली कृष्ण के अहसासों से
जिस्म का क्या करूँगी।
समझना हो गर मुझे
तो ज़रूरत दिल की पड़ेगी
वरना ये मनचली सी लड़की पल्ले कहाँ पड़ेगी।
हाँ गर छू गया रूह को कोई तो
मुझमे वो घुल जाएगा
मेरी इबादत से निखर कर वो
मेरे खुदा सा हो जाएगा।
मैं जुट जाऊँगी आठों याम इबादत में उसकी
यूँ देख कर सलीका मेरा वो हैरान रह जाएगा
न चाहते हुए भी जानती हूँ मैं
उसे ईश्क हो जाएगा।
©Akanksha Mogha
#Hum मैं।।