बहुत बार जब मैं पकड़ा जाता हूँ तुम्हे सोचता हुआ-खोय | हिंदी कविता

"बहुत बार जब मैं पकड़ा जाता हूँ तुम्हे सोचता हुआ-खोया सा मैं ये बोल कर पल्ला झाड़ लेता हूँ कि मैं एक कविता सोच रहा था। देखो, कैसे मेरे सच को लोग पकड़ नहीं पाते। ©Rmn"

 बहुत बार जब
मैं
पकड़ा जाता हूँ
तुम्हे सोचता हुआ-खोया सा

मैं ये बोल कर पल्ला झाड़ लेता हूँ
कि
मैं एक कविता सोच रहा था।

देखो,
कैसे मेरे सच को लोग पकड़ नहीं पाते।

©Rmn

बहुत बार जब मैं पकड़ा जाता हूँ तुम्हे सोचता हुआ-खोया सा मैं ये बोल कर पल्ला झाड़ लेता हूँ कि मैं एक कविता सोच रहा था। देखो, कैसे मेरे सच को लोग पकड़ नहीं पाते। ©Rmn

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