सुना है जान जाती है बिछड़ के अपने दिलबर से
कैसा होता है दर्द ए-इश्क हुनर ये आजमाना था!
गगन के हूं अभी नीचे कहीं एक आशियाना था
तुम्हारे साथ क्या चलता मुझे घर भी बनाना था
कई मुक्तक लिखे हैं मैंने तेरी प्रीत में जानम!!
सुखनबर हो गया मैं भी ज़माने को दिखाना था
मैं खुद को भूल बैठा हूं; मुझे तुम गैर ना समझो
मुकद्दस है प्यार मेरा यही तुमको बताना था
तुम्हारे बिन न जीता हूं बस शब ए गम आहे भरता हू
गुजारिश है मुझे दे दो मेरा जो भी ख़जाना था
©vikas (अज्ञानी)