कागज के टुकड़ो
से इंसान की शख्सियत
को आंकने वालों की
समझिये नियत
शायद सबको याद होंगे
तुलसी, सूर, और कबीर
फक्क्ड़, मस्त, मनमौजी
तबके पता नहीं किसी को अमीर
पैसे से बनते है, केवल
पैसे वाले कागजी मित्र
आज भी बाजार मे
कहीं बिकता नहीं सचरित्र
©Kamlesh Kandpal
#kvita