White कही गहराइयों में, अंतर्मन मे चल रहा संघर्ष। | हिंदी कविता

"White कही गहराइयों में, अंतर्मन मे चल रहा संघर्ष। ना रो सकते है ना कह सकते सहर्ष।। दर्द को ना समझता कोई, समझाऊ तो हसती है दुनिया। चुप रहूँ कुछ ना कहूं, डर जाऊ तो डराती है,दुनिया।। एक दर्द में, जाने कितनो का दर्द छिपा। एक कहानी का, अलग अलग किरदार दिखा।। हर कोई अपनी, एक अलग उलझन में खड़ा। न सुलझे ऐसी एक अलग अनबन में पढ़ा।। ऐसा नहीं की है,ये किसी एक का मुद्दा हर दूसरा इंसान इसी कश्माश में फंसा ।। कर मुश्किलों को दरकिनार। जी लो ज़िंदगी मुस्करकर ।। उठती गिरती लहरो से। सीखो जीने का हुनर ।। मुस्कराती गुनगुनाती सी। अपने में रहती मगन। ना है गहराइयों की फिकर। ना है डूबने का डर।। छूकर कर किनारो को। फिर मिलती गहराइयों मे जाकर।। यूँ करती तय अपना सफर। खुशी और गम का हाथ थामकर ।। शिल्पी जैन शिल्पी जैन ©chahat"

 White कही गहराइयों में,
अंतर्मन मे चल रहा संघर्ष।
ना रो सकते है 
ना कह सकते सहर्ष।।
दर्द को ना समझता कोई,
समझाऊ तो हसती है दुनिया।
चुप रहूँ कुछ ना कहूं,
डर जाऊ तो डराती है,दुनिया।। 

एक दर्द में,
जाने कितनो का दर्द छिपा।
एक कहानी का,
अलग अलग किरदार दिखा।।
हर कोई अपनी,
एक अलग उलझन में खड़ा।
न सुलझे ऐसी 
एक अलग अनबन में पढ़ा।।
ऐसा नहीं की 
है,ये किसी एक का मुद्दा
हर दूसरा इंसान
इसी कश्माश में फंसा ।।

कर मुश्किलों को दरकिनार।
जी लो ज़िंदगी मुस्करकर ।।
उठती गिरती लहरो से।
सीखो जीने का हुनर ।।
मुस्कराती गुनगुनाती सी।
अपने में रहती मगन।
ना है गहराइयों की फिकर।
ना है डूबने का डर।।
छूकर कर किनारो को।
फिर मिलती गहराइयों मे जाकर।।
यूँ करती तय अपना सफर।
खुशी और गम का हाथ थामकर  ।।
            शिल्पी जैन

                   शिल्पी जैन

©chahat

White कही गहराइयों में, अंतर्मन मे चल रहा संघर्ष। ना रो सकते है ना कह सकते सहर्ष।। दर्द को ना समझता कोई, समझाऊ तो हसती है दुनिया। चुप रहूँ कुछ ना कहूं, डर जाऊ तो डराती है,दुनिया।। एक दर्द में, जाने कितनो का दर्द छिपा। एक कहानी का, अलग अलग किरदार दिखा।। हर कोई अपनी, एक अलग उलझन में खड़ा। न सुलझे ऐसी एक अलग अनबन में पढ़ा।। ऐसा नहीं की है,ये किसी एक का मुद्दा हर दूसरा इंसान इसी कश्माश में फंसा ।। कर मुश्किलों को दरकिनार। जी लो ज़िंदगी मुस्करकर ।। उठती गिरती लहरो से। सीखो जीने का हुनर ।। मुस्कराती गुनगुनाती सी। अपने में रहती मगन। ना है गहराइयों की फिकर। ना है डूबने का डर।। छूकर कर किनारो को। फिर मिलती गहराइयों मे जाकर।। यूँ करती तय अपना सफर। खुशी और गम का हाथ थामकर ।। शिल्पी जैन शिल्पी जैन ©chahat

अंतर्मन

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