White ज़िन्दगी-सी यों ज़िन्दगी भी नहीं
किन्तु मंजूर ख़ुदक़ुशी भी नहीं
सिलसिलेवार मौत जीते हैं
ज़िन्दगी की घड़ी टली भी नहीं
दिल की दुनिया उजाड़ दी ख़ुद ही
गो कि फ़ितरत में दिल्लगी भी नहीं
बेख़ुदी का मलाल कौन करे
काम आई यहाँ ख़ुदी भी नहीं
कट गई उम्र, उठ गई महफ़िल
बात ईमान की चली भी नहीं
प्रश्न उठता है मैं नहीं हूँ कहाँ
और उत्तर में मैं कहीं भी नहीं
©दीपबोधि
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