इकरार इश्क़ करने को ,निकले थे घर से हम,
दिल में तेरे उतरने को, कितना सजे संवरे थे हम।
तेरी खिड़की के आगे, कितने पहर खड़े थे हम,
एक झलक पाने को , कितना तरस रहे थे हम।
खूबसूरती के चर्चे तुम्हारे, कितनों से सुने थे हम,
मजनुओं की भीड़ में, आशिक़ बने खड़े थे हम।