किसी रोज़ छॉंव की तलाश में न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
बस जीवन के खातिर न वृक्ष काटो।
ताल तलैया जल भर लेते,
प्यासों की प्यास, स्वयं हर लेते।
सुधा सम नीर अमित बांटो,
न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
स्नान करते राम रहीम रमेश,
रजनी भी गोते लगाये।
क्षय करे जो भी इन्हें, तुम उन सब को डाटो,
न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
नहर का पानी बड़ी दूर तक जाये,
गेहूं चना और धान उगाये।
फिर गेंहू से सरसों. तालाब पाटो,
फल और फूल वृक्ष हमें देते,
औषधियों से रोग हर लेते।
लाख कुल मुदित हँसे,
न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
स्वच्छ हवा हम इनसे पाते,
जीवन जीने योग्य बनाते
दूर होवे प्रदूषण जो करे आटो,
न नहर पाटो, न तालाब पाटो
©Kshatriya Kuldeep Singh
न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
बस जीवन के खातिर न वृक्ष काटो।
ताल तलैया जल भर लेते,
प्यासों की