जगलों से आवाज आती थी मैं घर जल्दी आ जाता था दरख़् | हिंदी शायरी

"जगलों से आवाज आती थी मैं घर जल्दी आ जाता था दरख़्त नही थे मेरे शहर में मैं किताबें पढ़ने लग जाता था कई किस्म के लोग थे दैर में कोई देने में कोई मांगने में लगा था जब कोई मेहमान घर आता था तो हर जगह सन्नाटा छा जाता था ©Siddharth kushwaha"

 जगलों से आवाज आती थी
मैं घर जल्दी आ जाता था

दरख़्त नही थे मेरे शहर में
मैं किताबें पढ़ने लग जाता था

कई किस्म के लोग थे दैर में
कोई देने में कोई मांगने में लगा था

जब कोई मेहमान घर आता था
तो हर जगह सन्नाटा छा जाता था

©Siddharth kushwaha

जगलों से आवाज आती थी मैं घर जल्दी आ जाता था दरख़्त नही थे मेरे शहर में मैं किताबें पढ़ने लग जाता था कई किस्म के लोग थे दैर में कोई देने में कोई मांगने में लगा था जब कोई मेहमान घर आता था तो हर जगह सन्नाटा छा जाता था ©Siddharth kushwaha

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