हिंदी दिवस "हिंदी" "चल पड़ी कुछ लिखने, आज मेरी | हिंदी

"हिंदी दिवस "हिंदी" "चल पड़ी कुछ लिखने, आज मेरी ये कलम। रहा है कितना मुश्किल, हिंदी भाषा का ये सफर।" "ना रहा आजकल, लोगों में इस भाषा का महत्व। अंग्रेज़ी बोलने की चाह में, गुम होता भाषा का अपनत्व।" "देखो दिल से जुड़े हैं, हम अभी भी इससे इस क़दर। कर पाते बखूबी खुद को, अपनी भाषा में ही अभिव्यक्त।" "तो क्यूं अपनाने में हो रही, हम सबको इतनी झिझक। अपनाओ साथ इसका, संवारों इसकी बिखरी-सी डगर।" "शब्दों के ज्ञान से, ज़रा खेलों तो इस क़दर। फिर ही जान पाओगे, है ये कितनी मीठी और सरल।" "ना रखो क़ैद इसको, अपनी वाणी में उम्रभर। वक्त रहते अपनाओ इसको, वरना हो चलेगी ये अनवगत।" © शिखा शर्मा"

 हिंदी दिवस    "हिंदी"

"चल पड़ी कुछ लिखने, आज मेरी ये कलम।
रहा है कितना मुश्किल, हिंदी भाषा का ये सफर।"

"ना रहा आजकल, लोगों में इस भाषा का महत्व।
अंग्रेज़ी बोलने की चाह में, गुम होता भाषा का अपनत्व।"

"देखो दिल से जुड़े हैं, हम अभी भी इससे इस क़दर।
कर पाते बखूबी खुद को, अपनी भाषा में ही अभिव्यक्त।"

"तो क्यूं अपनाने में हो रही, हम सबको इतनी झिझक।
अपनाओ साथ इसका, संवारों इसकी बिखरी-सी डगर।"

"शब्दों के ज्ञान से, ज़रा खेलों तो इस क़दर।
फिर ही जान पाओगे, है ये कितनी मीठी और सरल।"

"ना रखो क़ैद इसको, अपनी वाणी में उम्रभर।
वक्त रहते अपनाओ इसको, वरना हो चलेगी ये अनवगत।"

© शिखा शर्मा

हिंदी दिवस "हिंदी" "चल पड़ी कुछ लिखने, आज मेरी ये कलम। रहा है कितना मुश्किल, हिंदी भाषा का ये सफर।" "ना रहा आजकल, लोगों में इस भाषा का महत्व। अंग्रेज़ी बोलने की चाह में, गुम होता भाषा का अपनत्व।" "देखो दिल से जुड़े हैं, हम अभी भी इससे इस क़दर। कर पाते बखूबी खुद को, अपनी भाषा में ही अभिव्यक्त।" "तो क्यूं अपनाने में हो रही, हम सबको इतनी झिझक। अपनाओ साथ इसका, संवारों इसकी बिखरी-सी डगर।" "शब्दों के ज्ञान से, ज़रा खेलों तो इस क़दर। फिर ही जान पाओगे, है ये कितनी मीठी और सरल।" "ना रखो क़ैद इसको, अपनी वाणी में उम्रभर। वक्त रहते अपनाओ इसको, वरना हो चलेगी ये अनवगत।" © शिखा शर्मा

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