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पांव पांव चलोगे पहले,
तब इस छांव चलोगे तुम!
शहर औ शोर-शराबे से और,
कितने गांव छलोगे तुम!
पिघल गए यदि धवल बर्फ-नग,
जल प्लावित धरती होगी क्या?
या फिर सारा ताप फांक कर,
जल वंचित परती होगी क्या?
मानव निर्मित सुख संसाधन
प्रकृति विनाशक कितनी हैं?
लंबी निर्मित पुल मालाएं
वट छाया बाधक कितनी हैं?
भूमंडलीकृत हो चुका विश्व एक,
आंगन है या युद्ध क्षेत्र है?
अर्थवाद बस स्वार्थ सिद्ध या,
सुंदर भविष्य का परिप्रेक्ष्य है?
इन सारे प्रश्नों को पहले
हल कर कभी सकोगे तुम!
तब इस छांव चलोगे तुम!
~संजय तिवारी_शाग़िल✍️
©Sanjay Tiwari "Shaagil"
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