करीब से देख मुझे
मैं गहरा बहुत हूं
किनारों को मत ढूंढ
थमी लहरों को देख
तूफानों को अक्सर
मैं सहता बहुत हूं
गीली मिट्टी है मगर
खुशबू नहीं.. शायद
उदास से मौसम में
मैं बरसता बहुत हूं
कुछ अपनों की नसीहत
कुछ मेरी फितरत.. पर
सपनों के सफर पे
मैं डरता बहुत हूं
©Chinu Mahej
बेनाम शायर
#शायरी
#Poet
#Language_of_tears