रात हमारी दोस्त
दिनभर की भागा दौड़ी के बाद रात एक दोस्त की तरह आसरा देती है,
खामोशी के साए में मीठी नींद सुलाकर ख़्वाबों की दुनिया में ले जाती है,
रात अंधेरे की चादर ओढ़कर हमें चांँद की शीतल रौशनी से नहलाती है,
आसमान में टिमटिमाते तारों की बारात रात ही हमें दिखाती है,
रात के आगोश में हम रोते हैं हंँसते हैं अपने सारे ग़म भुलाते हैं,
बैठे-बैठे जब थक जाते रात का साया मीठी लोरी बनकर हमें सुलाती है,
खुद ढल जाती है पर एक प्यारी सी सुबह की सौगात दे जाती है,
हमें रौशनी देने को अपना अस्तित्व मिटाकर सच्ची दोस्ती की मिसाल देती है।
©Mili Saha
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