ये दौर कैसा है आया
हर तरफ नफरत का साया
ये कैसी मनहूसी छाई
गुम जिसमें खुशियां हैं सारी
लोग तिल -तिल जल रहें हैं
एक दूसरे को खल रहें हैं
फौजें करके खड़ी अपनी
नफरत की जंग लड़ रहें हैं
तेरी हार और मेरी जीत
फलसफा यूं घर कर रहा है
उलट कुछ हो जाए तो
विश्व युद्ध सा लड़ रहें हैं
चिंगारी लगाकर तमाशबीन भी
चाभी का बंदर बन रहें हैं
छलावे में जीने वाले अब
खुद को ही छल रहें हैं
एक सच से वो अनजान हैं
ऊपर बैठा एक भगवान है
सारे जुल्म वो देख रहा है
कर्म तुम्हारे तोल रहा है
कब तक तुम बच पाओगे
झूठ में जीते जाओगे
नरक की बड़ी कढ़ाई में
तुम भी तल दिए जाओगे ll
©Alka Dua