White ग़ज़ल: बनारस, प्रेम और मणिकर्णिका
बनारस की गली में वो मिला था,
नज़र में इक समुंदर सा खिला था।
वो बातें कर रहा था ज़िन्दगी की,
मगर मणिकर्णिका पे सब लिखा था।
हवा में थी ख़ुशबू रूहानी उसकी,
जहाँ मैं था, वहीं वो भी सिला था।
गंगा के किनारे बैठते हम,
वो दिल में और दिल में बनारस बसा था।
मरण का भी वहाँ भय कैसा होता,
जब उसकी आँखों में पूरा ब्रह्मांड था।
©"सीमा"अमन सिंह
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