मैं जुबां को हमेंशा शांत रखता हूं मगर ये कलम चुप्प | हिंदी शायरी

"मैं जुबां को हमेंशा शांत रखता हूं मगर ये कलम चुप्पी तोड़ जाती है मैं इत्र की इनायत पे निर्भर नहीं हूं ये खुशबू तो मेरे किरदार से आती है ©Neeru Madina"

 मैं जुबां को हमेंशा शांत रखता हूं
मगर ये कलम चुप्पी तोड़ जाती है
मैं इत्र की इनायत पे निर्भर नहीं हूं
ये खुशबू तो मेरे किरदार से आती है

©Neeru Madina

मैं जुबां को हमेंशा शांत रखता हूं मगर ये कलम चुप्पी तोड़ जाती है मैं इत्र की इनायत पे निर्भर नहीं हूं ये खुशबू तो मेरे किरदार से आती है ©Neeru Madina

इत्र
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