"कभी- कभी मन कुंठित हो जाता है
आशाएँ टुटने लगती हैं
मानो जीवन में कुछ रहा ही नहीं
भीड़ में होकर भी अकेला पन सा लगता है
मानो अपना कोई रहा ही नहीं
हाँ,जब कोई अपना धोखा देता है तो
सब बेगाना लगता है सब बेगाना लगता है
krishna"
कभी- कभी मन कुंठित हो जाता है
आशाएँ टुटने लगती हैं
मानो जीवन में कुछ रहा ही नहीं
भीड़ में होकर भी अकेला पन सा लगता है
मानो अपना कोई रहा ही नहीं
हाँ,जब कोई अपना धोखा देता है तो
सब बेगाना लगता है सब बेगाना लगता है
krishna