part 2 महकते हुए गुलाब की पंखुड़ी, मशहूर गुलशन की | हिंदी फ़िल्म

"part 2 महकते हुए गुलाब की पंखुड़ी, मशहूर गुलशन की शान खाली नहीं, एक पल को आफरीन, उस लम्हें को सलाम, जा रहे हो, जा रहे हो। ग़ज़ल की गहराई, मुलाकात की तिश्नगी, एहसासों का एहतराम, स्पर्श का मरहम, जुनून-ए-जमीं पर फ़कत मयस्सर तुम हो, जा रहे हो, जा रहे हो। दिल्लगी का चांद शिद्दत से, असरार के बगीचे में खिला, लफ्जों की बेड़ियों से रिहा होकर, जा रहे हो,जा रहे हो। ©Ankit verma 'utkarsh'"

 part 2
महकते हुए गुलाब की पंखुड़ी,
मशहूर गुलशन की शान खाली नहीं,
एक पल को आफरीन, उस लम्हें को सलाम,
जा रहे हो, जा रहे हो।
ग़ज़ल की गहराई, मुलाकात की तिश्नगी,
एहसासों का एहतराम, स्पर्श का मरहम,
जुनून-ए-जमीं पर फ़कत मयस्सर तुम हो,
जा रहे हो, जा रहे हो।
दिल्लगी का चांद शिद्दत से,
असरार के बगीचे में खिला,
लफ्जों की बेड़ियों से रिहा होकर,
जा रहे हो,जा रहे हो।

©Ankit verma 'utkarsh'

part 2 महकते हुए गुलाब की पंखुड़ी, मशहूर गुलशन की शान खाली नहीं, एक पल को आफरीन, उस लम्हें को सलाम, जा रहे हो, जा रहे हो। ग़ज़ल की गहराई, मुलाकात की तिश्नगी, एहसासों का एहतराम, स्पर्श का मरहम, जुनून-ए-जमीं पर फ़कत मयस्सर तुम हो, जा रहे हो, जा रहे हो। दिल्लगी का चांद शिद्दत से, असरार के बगीचे में खिला, लफ्जों की बेड़ियों से रिहा होकर, जा रहे हो,जा रहे हो। ©Ankit verma 'utkarsh'

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