कविताएं मुझें मिटने नहीं देती है। जब भी भटकता हूँ

"कविताएं मुझें मिटने नहीं देती है। जब भी भटकता हूँ इधर उधर, कुछ कविताएं मुझें, अपनी ओर खींच लेती है। बांध लेती है ये मुझें असंख्य विचारों की परिधि में, और कैद करती हैं, कुछ उम्दा अनुभवों के बीच। ये मुझें टूटने नहीं देती, एक मामूली तिनके की तरह, जैसे मेरे टूटने से, इनका भावार्थ बदल जाएगा। कहीं बिखर ना जाए, मेरे जीवन से छंद और तुकांत, शायद इस लिए ये मुझें, समेट कर रखती हैं शांत। ना ही मुझें समाज के कड़वे, अनुभवों से कटने देती हैं, मैं मिटना भी चाहूं तो क्या, कविताएं मुझें मिटने नहीं देती है। ©योगेश योगी"

 कविताएं मुझें मिटने नहीं देती है।

जब भी भटकता हूँ इधर उधर,
कुछ कविताएं मुझें,
अपनी ओर खींच लेती है।

बांध लेती है ये मुझें
असंख्य विचारों की परिधि में,
और कैद करती हैं,
कुछ उम्दा अनुभवों के बीच।

ये मुझें टूटने नहीं देती,
एक मामूली तिनके की तरह,
जैसे मेरे टूटने से,
इनका भावार्थ बदल जाएगा।

कहीं बिखर ना जाए,
मेरे जीवन से छंद और तुकांत,
शायद इस लिए ये मुझें,
समेट कर रखती हैं शांत।

ना ही मुझें समाज के कड़वे,
अनुभवों से कटने देती हैं,
मैं मिटना भी चाहूं तो क्या,
कविताएं मुझें मिटने नहीं देती है।

©योगेश योगी

कविताएं मुझें मिटने नहीं देती है। जब भी भटकता हूँ इधर उधर, कुछ कविताएं मुझें, अपनी ओर खींच लेती है। बांध लेती है ये मुझें असंख्य विचारों की परिधि में, और कैद करती हैं, कुछ उम्दा अनुभवों के बीच। ये मुझें टूटने नहीं देती, एक मामूली तिनके की तरह, जैसे मेरे टूटने से, इनका भावार्थ बदल जाएगा। कहीं बिखर ना जाए, मेरे जीवन से छंद और तुकांत, शायद इस लिए ये मुझें, समेट कर रखती हैं शांत। ना ही मुझें समाज के कड़वे, अनुभवों से कटने देती हैं, मैं मिटना भी चाहूं तो क्या, कविताएं मुझें मिटने नहीं देती है। ©योगेश योगी

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