समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं के घाट पर हम फिसलते चले गए,
जितनी बार चाहा उठना,
उतना ही लुढ़कते चले गए,
जब होश आया तो हम बेसुध पड़े थे,
लोगों कि निगरानी में हम घायल पड़े हुए थे,
सहानुभूतियों का दौर चल पड़ा,
हर कोई आज मुझे सलाह दे रहा था,
कोई सहानुभूति पूर्वक तो कोई अधिकार पूर्वक,
बड़े ही प्यार से कोई समझा रहा था तो कोई डांँट रहा था |
©DR. LAVKESH GANDHI
#AdhureVakya #
# समस्याओं में उलझते चले गए #