मैं पीड़ित हूं नियति के न्याय से और तुम मुझसे गी | हिंदी कविता

"मैं पीड़ित हूं नियति के न्याय से और तुम मुझसे गीत गाने की बात कर रहे हो मन पर अनगिनित घाव पड चुकेहै मेरे और तुम मुझे आघात सह लेने की बात कर रहेहो कर्मो की निरंतरता मुझे थकाने में व्यस्त है और तुम मुझसे मुस्कराने की अपेक्षा कर रहे हो दुखो का दर्द मेरी हार का बिगुल बजा चुका है और तुम हो कि मुझे जीत के लिये मूड़ता भरे मन्त्र सिखा रहेहो ©Parasram Arora"

 मैं  पीड़ित हूं नियति के न्याय से
और  तुम मुझसे  गीत  गाने की  बात कर रहे हो

मन पर  अनगिनित  घाव  पड  चुकेहै मेरे
और तुम मुझे आघात  सह लेने  की बात कर रहेहो

कर्मो  की  निरंतरता  मुझे थकाने में  व्यस्त है
और  तुम मुझसे  मुस्कराने की अपेक्षा कर रहे  हो

दुखो का दर्द मेरी हार  का बिगुल बजा चुका है 
और तुम हो कि मुझे जीत के लिये मूड़ता भरे मन्त्र सिखा रहेहो

©Parasram Arora

मैं पीड़ित हूं नियति के न्याय से और तुम मुझसे गीत गाने की बात कर रहे हो मन पर अनगिनित घाव पड चुकेहै मेरे और तुम मुझे आघात सह लेने की बात कर रहेहो कर्मो की निरंतरता मुझे थकाने में व्यस्त है और तुम मुझसे मुस्कराने की अपेक्षा कर रहे हो दुखो का दर्द मेरी हार का बिगुल बजा चुका है और तुम हो कि मुझे जीत के लिये मूड़ता भरे मन्त्र सिखा रहेहो ©Parasram Arora

नियति का न्याय.....

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